Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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'श्रीजिनोदयसूरि विवाहलउं
३६३ माइ भणइ निसुणि वच्छ भोलिम ३८ धणो,
त नवि ३६ जाणए ४० तासु सार । रूपि न रीजए मोहि न भीजए,
दोहिली जालवीजइ अपार ।।१४।। लोभि न राचए मयणि न माचए,
- काचए चित्ति४१ सा परिहरए । अवर नारी अवलोयणि४२ रूसए,
___ आपणपइं४३ सयि४४ सत वरए ।।१५।। हसिय४५ अनेरीय वात विपरीत, तासु तणी छई घणी सच्छ । सरल४६ सभाव४७ सलणडा बाल,४८
कुणपरि रंजिसि४६ कहि न वच्छ ।।१६।। तेण कल कमल दल कोमल५०हाथ, बाथ५१ म बाउलि देसितउं । रूपि अनोपम उत्तम वंश५२, परणाविसु वर नारि हउं ॥११ नव नव भंगिहिं पंच पयार५३, भोगिवि भोग वल्लह कुमार । क्रमि ऋमि अम्ह कुलि कलसु५४ चडावि,
होजि संघाहिवइ५५ कित्तिसार ॥१८॥ इय जणणि वयण सो कुमरु निसुणेवि,
कंठि आलंगिउं५६ भणइ५७ माइ। जा ५८सुहगुरि कहि साजि मूं मु (म?) नि रही,
अवर भलेरीय न सुहाइ५६ ।।।।१।। ३८b भूलिम, ३९॥ तं, ४०d. ४१ वित्ति, ४२b अवलोयणे, ४३b पय, ४४d रूपि, ४५b इसी ४६b सरण ४७b सम्भाव, ४८। बाला, ४९b रंजसि, ५०d कोमला, ५१d बाम, ५२d बरु, ५३d पयारइ, ५४० कलस, ५५b संघाहिब, १६b आलिगिय ५७b भणय, ५८c जास, ५९b सहाए ।
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