Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 632
________________ २८२ चक्र चलना कठिन शब्द-कोष ४३७ आपै ९७ देता है इलि २५३,३७३ पृथ्वीपर आम ४०८ इस प्रकार इसडे १९० ऐसे आम्नाय२७३,२८४ परम्परा, सम्प्र-इंटाल ३२९ ईटोंसे दाय। इंदा २८५ इंद्र आम्बिल ११६ तपस्या,(६विगयों का त्यागविशेष) ईति आयरिय ३२७ धान्यादिको २६ आचार्य आरखे हानि पहुंचाने १९० प्रकार वाले चूहादि आरा प्राणी। आराहण ५५ आराधन आरिज १६०,३७६ आर्य ईर्या (मुमति) २६२ विवेकपूर्वक आरुहर १६६ चढ़ा आलंगिउ ३९३ आलिङ्गन आलि २४ व्यर्थ उइखहु ३६५ उपेक्षा करना आलीजा १०८ प्रेमी उकेश ३०७ उपकेश,ओसआलोयण ३४८ आलोचन वाल आवतिया १०४ आ रहे हैं उक्कंठित ३९२ उत्कण्ठितहुआ आवर्त ३०० दोनों हाथ गुरु उखेवे ३३१ खेना के पैरोंपर लगा उग्गमणे २८ उदय होनेपर कर अपने मस्तक उच्छंगि ६८,३१५,३४४ गोद पर लगानेकी उच्छरंग उत्साह, उत्सव उजवालण २९३ उज्ज्वल करना आसन्नसिद्धि २९० निकट मोक्षगामी उज्जोइउ १, ३६६ प्रकाशित किया आसंगायत ४१४ आश्रयवर्ती, उणइ ४९ उसने आधीन उत्तंग ३३५ ऊचा उत्थपिय २९ उखाड़ा उत्सूत्राविधि २६ उत्सूत्रऔरअविधि ३३ एक-एक उथप्पिय ४५ उखाड़ा Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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