Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 641
________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह नयनिमल ३२ नीतिमें निर्मल निद्धड़इ ३६ परास्त करना नयरि १ नगर निब्भंत ३३ निर्धान्त नरभव २४ मनुष्यभव १६ निज नरवय २ नरपति नियुमणि ३६७ अपने मनमें नवगीय २९ नव ग्रैवेयक नियमन ६२ निज मन नव्याण ३२६ निनानवे ९९ नियरू १ निकर, समूह नही १० नहीं निरीहो १३ अनाशक्त नाइसक्या २९४ नहीं आ सके निरुत्तउ ३५ निश्चित नाडय १ नाटक निलउ ६,१७५ निलय, घर नाण १,६,३८५ ज्ञान निलो ३१४, ३१६ " नाणवंत ३६६ ज्ञानी निलवट १८१, २९५ ललाट नाणिहि ४९ ज्ञान रूपी निवड १५५ घनिष्ट नाथणा २५८ नाथ डालना, निवेस १७९ स्थान वशमें करना निष्पन्न २७१ सम्पन्न ८० आवाज निसम्ये २७६ सुनकर नान्हडियउ १६३ छोटा निसाले ३२२ पाठशाला नामा १६६ नाम निसियरु ३३ निशाचर,राक्षस नारिग ३२ नारिंग, मीठा निसुणवि २१ सुनकर नीबू निसुणेवि निकाचिय ३५६ निविड रूपसे । निहतरइ १५६ नोतरना, आमं बन्धन त्रित करना निगोद ३२९ अनन्त जीवोंका नोकर ११८ अच्छा, भला एक साधारण नीगमउ । २४ गमादो शरीर विशेष नीझामता ३३० पार पहुंचाता निग्रंथ २७० परिग्रह रहित नीलवण ३३० लीलोती, निच्चु ३०१ नित्य हरियाली निजणवि ३५,३९ जीता जीवाणो १३० नीचा स्थान निजिणिउ ३१,४९ जीता नेजा ३५३ भाले निटोल ५१,१२० व्यर्थ न्यात ३११ ज्ञाति, जाति नादौ ३९३ " Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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