Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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४५०
ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह
पुहवि
पूय
पैशुन पैसारे
पुलिया. ४१४ चले प्रहफाटी १३३ पौ फटी पुखुक्किउ ३६५ पूर्वकृत प्रहसमि __ ९७ प्रभात समय पुछपां १७७ पुष्प प्ररूपीयो १४८ प्ररूपा, कहा
१ पृथ्वी प्राहि ३४३ प्रायः पुठो १४८ पीछे
प्रोल ३३६ प्रतोली, दरवाजा ३८७ पूजा पैसारो ४१३ प्रवेश
फरहर २९३ फहरानेवाली २७९ निन्दा
. पताकायें ३०४ प्रवेश कराया
फासूय ३१ फासू , प्राशुक पोसड १५४,१८२ पौषध
फडवि ३६ स्पष्ट, व्यक्त, पोलहा ११४ पौषध
विशद । पोहोती २९० पहुंचो
फेड्या ३५२ नष्ट किये। पौषधशाला ३०४ उपाश्रय
फोक १४३,२७७ व्यर्थ पंथीड़ा ३०३ पथिक, यात्री
फोफल ६७ नारियल पंकय ४९ पंकज
ब पंडिया १ पण्डित
बईठ . ३४६ बैठा प्रघल ४१६ खूब
बजडाव्या १४६ बजवाये प्रजालियो ३२९ जलाया
बड आरू ३२ बड़का फल प्रतई १५६ तरफ
बडवखती १४६,४१४ बड़भागी प्रतिबोधीयो १४८ समझाया, बत्रीस १५७ बत्तीस ज्ञान दिया वन्न उला
३५१ बनोला . प्रभावना ३३८ जिस कार्यके बरास ११४ कपूर मिर्मित
सुगन्धित द्रव्य द्वारा प्रभाव पड़े
३३० वर्ष प्ररूपणा. २६५ कथन, वक्तव्य
बहरखा ३५२ बाहूका गहना प्रवरू २५७ प्रवर
भुजबन्ध प्रसन्यो ३२२,२७१ पैदा हुआ बंभ . ३६५ ब्रह्मा,ब्राह्मण प्रह
३२० पौ, प्रभात । बाकुला १२० बाकले
बरीस
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