Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह एक मन भजन भगवंत नउ करतहिं,
सुणतहिं उत्तराध्ययन वाणि। सावचेत आप श्री संघ बैठा थकां,
स्वर्ग गति लहिय पुण्यवन्त प्राणी ॥ ६॥ वा० ।। वादियां गंजणो सकल जण रंजणो,
प्रगट घट ज्ञान बहु आण पूरो। दुःख दालिद्र हरि सुख संपति करइ,
सुप्रसन्न सेवकां हुइ सनूरो ॥ ७॥ वा० ॥ भाग बड़ भेटयइ राग मन लाइ नइ,
गाइ नइ सुगुण शोभा बड़ाई। कुंकमे केसर पूजतां पादुका अधिक,
धरि ऋद्धि नव निद्धि आई ।। ८॥ वा० ।। संघ सुखदाय मन लाय सुख सागरा,
नागरा नित नमइ शीस नामी । गणि 'समयहर्ष' नित सुगुरु गुण गावतां
सिद्धि नव निद्धि बहु वृद्धि पामी ।। ६ ।। वा० ॥
॥ इति गुरु गीतम् ।।
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