Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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श्री जिनसागरसूरि अवदात गीत
२०३
चतुर माणस चित्त उलसइ रे, देखी पूज सरुप रे । हो पूजजी।।
नान्हीवय गुण मोटका रे, उपजइ भाव अनूप रे ॥१॥ ए परमार्थ प्रीछज्यो रे। मान सरोवर लहुडोरे, राजहंस सेवइ तीर रे ।
लवणागर मोटउ धणुं रे, पंथी न चाखइ नीर रे ॥२॥ चंदा केरे चांदणे, सहुको बइसइ पास रे ।
सूर (सूर्य!) तपइ जो आकरो, जावइ सहुको नासि रे ॥३॥ उंचो लांबो अति घणउ, सरलउ पिंड खजर रे ।
नान्ही केलि कहावतो, छाया फल भरपूर रे ॥४॥ मोटा मइगल मद झरइ, विलसइ ता गर (लग?) राज।
सीहणि केरो छावडोरे, गाजइ नही वन मांझ ५॥ नान्हा मोटा क्युं नहों, गुण अवगुण बंधाण ।
'जिणसागर सूरि' चिर जयउ रे, हर्षनन्दन' गुण जाण ॥६॥
RSIRSAR
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