Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार
२३ इस प्रकार विषय भोगोंको भोगते हुए धारल देवीकी कुक्षिमें सिंह स्वप्न सूचित एक पुण्यवान जीव अवतरित हुआ। - ज्योतिषियोंको स्वप्न फल पूछनेपर उन्होंने सौभाग्यशाली पुत्र उत्पन्न होनेकी सूचना दो। यथा समय (गर्भ वृद्धि होनेके साथसाथ अच्छे-अच्छे दोहद उत्पन्न होने लगे, अनुक्रमसे गर्भ स्थिति परिपूर्ण होनेसे) सं० १६४७ वैसाख सुदी ७ बुधवार, छत्र योग श्रवण नक्षत्रमें धारलदेवीने पुत्र जन्मा । ___ दशूठण उत्सवके अनन्तर नवजात शिशुका नाम खेतसी रखा गया, वृद्धिमान होते हुए खेतसी * कलाभ्यास करने लगा अनुक्रमसे ६ भाषा, १८ लिपि, १४ विद्या, ७२ कला, ३६ राग और चाणक्यादि शास्त्रोंका अध्ययन कर प्रवीण हो गया। इसी समय अकबर बादशाह प्रशंसित जिन सिंह सुरिजी बीकानेर पधारे। लोक बड़े हर्षित हुए और सूरिजीका धर्मोपदेश श्रवणार्थ सभी लोग आने लगे, ( अपने पिताके साथ ) खेतसी कुमार भी व्याख्यानमें पधारे । और धर्म श्रवणकर वैराग्यवासित होकर घर आकर अपनी माताजी से दीक्षा की अनुमति मांगी । पर पुत्रका स्नेह सहज कैसे छूट सकता था। माताने अनेक प्रकारसे समझाया पर खेतसी कुमार अपने दृढ़ निश्चयसे विचलित नहीं हुए और सं० १६५६ मार्गशीर्ष शुक्ला १३ को जिनसिंह सूरीजीके समीप दीक्षा ग्रहण की। इस समय धर्मसी शाहने दीक्षाका बड़ा उत्सव किया, नव दीक्षत मुनि अब गुरुश्री के प्रदत्त राजसिंहके नामसे परिचित होने लगे।
* एक पट्टावलीमें लिखा है कि आपके लघु भ्राता भैरवने भी आपके साथ दीक्षा लो।
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