Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार सिधारी । पहुत्तणी (संभवतः आपकी पदस्थ) हेमसिद्धिने आपैकी स्मृतिमें यह गीत बनाया।
गुरुणी विमलसिद्धि
(पृ० ४२२) आप मुलतान निवासो माल्हू गोत्रीय शाह जयतसीकी पत्नी जुगतादे की पुत्री-रत्न थीं। लघुवयमें ब्रह्मचर्य व्रतके धारक अपने पितृव्य गोपाशाहके प्रयत्नसे प्रतिबोध पाकर आपने साध्वी श्री लावण्यसिद्धिके समीप प्रव्रज्या स्वीकार की थी । निर्मल चारित्रको पालन कर अनशन करते हुए बीकानेरमें स्वर्ग सिधारी । उपाध्याय श्रीललितकीर्तिजीने स्तूपके अन्दर आपके सुन्दर चरणोंकी स्थापना कर प्रतिष्ठा की। साध्वी विवेकसिद्धिने यह गीत रचा।
गुरुणी गीत
(पृ० २१४) आदिकी १॥ गाथा नहीं मिलनेसे आर्याश्रीका नाम अज्ञात है।
साउंसुखा गोत्रीय कर्मचन्दकी ये पुत्री थीं। श्री जिनसिंह -सूरिजीने आपको पहुतणी पद दिया था और सं० १६६६ भाद्रकृष्ण २ को विद्यासिद्धि साध्वीने यह गुरुणीगीत बनाया है।
MARA
KINAN
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