Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
View full book text
________________
श्री जिनचन्द्रसूरिगीतानि वखत बडा गुजराति ना जी, पूज पधार्या जेथ रे।
धन धन लोक सहुवलि रे, जेह वसइ छइ तेथ रे ॥२॥रा०॥ पूज तणइ जे श्रीमुखड़ जी, निसुणइ अमृत वाणि रे। __सेव करइ गुरु नी शाश्वती रे, तेहनो जन्म प्रमाणि रे ॥३॥रा० दिवस घणा विचि वउलीया जी, आवण केरी आस रे । हुंसि अछइ माहरइ हियइ जी, इहां जइ करउ चउमासि रे ।४||रा०॥ श्री जेसलगिरि संघ नी जो, अधिक अछइ मन कोडि रे ।
गुरुजी चरणइ लागिवा, रे त्रिकरण शुद्ध कर जोडि रे ॥५॥ारा॥ साधु नी संगति जउ मिलइ रे, तउ पूजइ मन नी आस रे । चिंतामणि करि जउ चढयइ रे, तउ चित्त थाइ उल्लास रे ॥धारा०॥ मुझ मन हरख घणउ अछइ जी, तुम्ह मिलवा नुं आज रे । तुम्ह आव्यां सवि साध्यस्यां रे, अधिक धरम तणा काज रे पारा॥ इहां विलम्ब नवि कीजियइ जी, श्री खरतर गणधार रे । श्री जिनचन्द्र गुणभणइ रे, "गुणविनय" गणि सुखकार रे ॥८॥रा०||
(स्वयंलिखित-पत्र १ हमारे संग्रह में )
(१२) राग-सामेरी सुगुरु कइ दरसन कइ बलिहारी।
श्री खरतरगच्छ जंगम सुरतरु, जिनचन्दसूरि सुखकारी ॥१॥सु०॥ अकबर शाहि हरख करि कोनउ, युगप्रधान पदधारी । . खंभायत मइ शाहि हुकम तई, जलचर जीव उबारी ॥२॥सु०॥ सात दिवस जिनि सब जीवन की, हिंसा दूर निवारी ।
देश देशि फरमान पठाए, सब जग कु उपगारी ॥३॥सु०॥
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org