Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ७ को सूरिजीसे दीक्षा ग्रहण की* । उस समय अमरसरके श्रीमाली थानसिंहने दीक्षा महोत्सव किया । - नवदीक्षित मुनिके साथ जिनसिंहसूरिजी प्रामानु-ग्राम विहार करते हुए राजनगर पधारे। वहां युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी को वंदना की, सूरिजीने नवदीक्षित सांमल मुनिको (मांडलके तप बहन कर लिये, ज्ञातकर) बड़ी दीक्षा देकर नाम स्थापना “सिद्धसेन" की। इसके पश्चात सिद्धसेन मुनि आगमके उपधान (तपादि) वहन करने लगे और बीकानेरमें छः मासी तप किया। विनय सहित आगमादिका अध्ययन करने लगे। युगप्रधान पूज्यश्री आपके गुणोंसे बड़े प्रसन्न थे। कविवर समयसुन्दरके सुप्रसिद्ध शिष्य वादी हर्षनन्दनने आपको विद्याध्ययन बड़े मनोयोगसे कराया। __ इस प्रकार विद्याध्ययन और संयम पालन करते हुए श्री जिनसिंहसूरिजीके साथ संघवी आसकरणके संघ सह शत्रुजयतीर्थकी यात्रा की। बहांसे विहारकर खंभात, अहमदाबाद, पाटण होते हुए वडलीमें जिनदत्तसूरिजीकी यात्रा की। वहांसे विहारकर सिरोही पधारे। वहांके राजा राजसिंहने बहुत सम्मान किया और संघने प्रवेशोत्सव किया। वहांसे जालोर, खंडप, द्रूणाड़ा होते हुए घंघाणी के प्राचीन जिन बिम्बोंके दर्शन कर बीकानेर पधारे। शा० बाघ मलने प्रवेशोत्सव किया। जिनसिंहसुरिजीने चतुर्मास वहीं किया । इसी चतुर्मासके समय उन्हें सम्राट् सलेमने मेवड़े दूत भेजकर आमन्त्रित
* निर्वाण रासमें मृगादेका दीक्षित नाम माणिक्यमाला और वीकेका नाम विवेक कल्याण लिखा।
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