Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार सा० वीरजी, देवकरण, पारख जस्सू, भाणजी, सूरजी, तेजपाल इत्यादि ईडरका संघ सम्मिलित हुआ इसी प्रकार द्याक्ड़ और अहिमनगरका संघ एवं सावलीका संघ पदमसी, चांदसी आदि एकत्र हुए, सा० नाकर पुत्र सहजूने चतुर्विध संघके साथ पद प्रदानके लिये तपागच्छ नायकको एवं उ० धर्मविजय वा० लावण्यविजय वा० चारित्रविजय पं० कुशलविजय इन चारोंको बुलाया गया। पदस्थापनाके अनन्तर कनकविजयका नाम विजयसिंहसूरि रखा गया, पं० कीर्तिविजय, लावण्यविजयको वाचकपद और अन्य ८ साधुओंको पंडित पद दिया गया। इस उत्सवमें सहजूने पांच हजार महम्मदी व्यय किये, ईडर नरेश कल्याणमल प्रसन्न हुए। ज्येष्ठ मासमें बिम्ब प्रतिष्ठा हुई, शाह रइयाने उत्सव किया, दूसरे यक्षमें अमराउतने सुयश लिया, पारख देवजीके घर पूज्यश्रीने प्रतिष्ठा की, इस प्रकार सं० १६८१में बड़े ही आनन्दोत्सव हुए। राय कल्याणने दोनों आचार्यों को ईडरमें चौमासेके लिए रखा।
सीरोहीके शाह तेजपालकी विज्ञप्तिसे चैत्र मासमें सूरिजी आबू पधारे, सं० मेहाजल दोसी, जोधा सन्मुख आए। आबूकी यात्राकी। बभणवाड़के वीर प्रमुकी यात्रा कर चातुर्मासार्थ सीरोही पधारे । मा० तेजपालादिने बहुतसे सुकृत किये । इसी समय विजयादशमी सं० १६८३ को यह विजयप्रकाश रास कमलविजयके शिष्य विद्याविजयके शिष्य गुणविजयने रचा।
ऐतिहासिक सझायमाला भा० १ पृ० २७ ( सझाय नं० ३४ लालकुशलकृत ) में कई बातोंका अन्तर व विशेषताएं हैं।
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