Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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श्रोजिनचन्द्रसूरि अकबर-प्रतिबोध रास ६५ महुर बधाउ आविउ सिवपुरि, हरखिउ संघ सुजाणो जी। पाल्हणपुर श्रीपूज्य पधारिया, जाणिउ राव सुरताणो जी ॥६१।।प० संघ तेड़ी ने रावजी इम भणइ, आपुं छु असवारो जी।
, तेडि आवउ वेगि मुनिवरु, मत लावउ तुम्ह वारो जी ।।६।। श्रीसंघ राय जण पाल्हणपुरि जइ, तेडी आवइ रंगो जी। गामागर पुर सुहगुरु विहरता, कहता धर्म सुचंगो जी ॥६३।।
राग देशाख ढाल (इकवीस ढालियानी) सीरोही रे आवाजउ गुरु नो लही, नर-नारी रे आवइ साम्हा उमही। हरि कर रथ रे पायक बहुला विस्तरइ,
कोणी(क) जिम रे गुरु वंदन संघ संचरइ ।। संचरइ वर नीसांण नेजा, मधुर मादल बज ए। पंच शब्द झलरि संख सुस्वर जाणि अंबर गज ए॥ भर भरइ भेरी वलि नफेरी, सुहव सिर घटकिज ए। सुर असुर नर वर नारि किन्नर, देखि दरसण रंज ए ॥६॥ वर सूहव रे पूठि थकी गुण गावती, भरि थाली रे मुक्ताफल वधावती । जय २स्वर रे कवियण जण मुख उचरइ, वरनयरी रे माहे इम गुरु संचरइ
संचरइ श्रावक साधु साथइ, आदि जिन अभिनंदिया। सोवनगिरि श्रीसंघ आवउ, उच्छव कर गुरु वंदिया। __राय श्रीसुलताण आवी, वंदि गुरु पय वीनवइ । मुझ कृपा कोजइ बोल दीजइ, करउ पजुसण हिवइ ॥६५॥ गुरु जाणि रे आग्रह राजा संघ नउ, पजुसणरे करइ पूज्य संघशुभ मनउ । अट्ठाही रे पाली जीव दया खरी, जिनमंदिर रे पूजइ श्रावक हितकरी।
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