Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सारं है :-भावहर्षसूरि-जिनतिलक-जिनोदय-जिनचन्द्र-जिनसमुद्र-जिनरत्न-जिनप्रमोद-जिनचन्द्र--जिनसुख---जिनक्षमाजिनपद्म-जिनचन्द्र-जिनफतेन्द्रसूरि हुए, आपकी शाखामें अभी यतिवर्य नेमिचन्द्रजी वालोतरेमें विद्यमान है। विशेष विचार खरतर गच्छ इतिहासमें करेंगे।
जिनसागर सूरि शाखा [ लघु आचार्य]
जिनसागरसूरि
(पृ० १७८-२०३-३३४) मरुधर जंगल देशके बीकानेर नगरमें राजा रायसिंहजी राज्य करते थे। उस नगरमें बोथरा गोत्रीय शाह बच्छा निवास करते थे, उनकी भार्या मृगादेकी कुक्षिसे सं० १६५२ कार्तिक शुक्ला १४ रविवारको अश्विन नक्षत्रमें आपका जन्म हुआ था। आप जव गर्भमें अवतरित हुए थे, तब माताको रक्त चोल रत्नावलीका स्वप्न आया था, उसीके अनुसार आपका नाम “चोला" रक्खा गया, पर लाड ( अतिशय प्रेम ) के नाम सामलसे ही आपकी प्रसिद्धि हुई।
एकबार श्रीजिनसिंहसूरिजीका वहां शुभागमन हुआ और उनके उपदेशसे सामल कुमारको वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने अपनी मातुश्रीसे दीक्षाकी अनुमति मांगी। इसपर माताने भी साथ ही दीक्षा लेनेका निश्चय प्रकट किया। इधर श्री जिनसिंह सूरिजी विहारकर अमरसर पधारे। तब वहां जाकर सामलकुमार ने अपने बड़े भाई विक्रम और माताके साथ सं० १६६१ माह सुदी
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