Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
A
जिनदेवसूरि
(पृ० १४) जिनप्रभसूरिजीके पट्टपर आप सूर्यके समान तेजस्वी थे। मेढ़ मंडल-दिल्लीमें आपके बचनामृतसे महम्मद शाहने कन्नाणापुर (कन्यायनीय) मंडण वीर प्रभुको शुभलग्नमें स्थापित किया था। ज्ञानविज्ञान, कला-कौशलके आप भण्डार थे एवं लक्षण, छन्द, नाटक आदिके आप वेत्ता थे।
कुलधर (शाह ) के कुलमें वीरणी नामक नारि-रत्नके कुक्षिसे आपका जन्म हुवा था, जिनसिंहसूरिजीके पास आपने दीक्षा ग्रहण की थी। आपके पीछेके आचार्योकी नामावलीका पता (१६ वीं शताब्दीके पूर्वार्द्ध तकका) हमारे संग्रहके एक पत्र एवं ग्रन्थ प्रशस्तियों से लगा है। जिसका विवरण इस प्रकार है :___ जिनप्रभसूरि—जिनदेवसूरि-पट्टधरद्वय १ जिनमेरुसूरि २ जिनचन्द्रसूरि, इनमें जिनमेरुसूरिके पट्टधर-जिनहितसूरि--जिनसर्वसूरि-जिनचन्द्रसूरि-जिनसमुद्रसूरि-जिनतिलकसूरि (सं० १५११)-जिनराजसूरि-जिनचंद्रसूरि (सं० १५८५)-पट्टधरद्वय १ जिनमेरुसूरि और २ जिनभद्रसूरि—(सं० १६००) जिनभानुसूरि (सं० १६४१)
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