Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार
महोपाध्याय राजसोम
(पृ० ३०५) १६ वीं शताब्दीके सुप्रसिद्ध विद्वान क्षमाकल्याणजीके आप विद्यागुरु थे, अतः उन्होंने आपके गुण-गर्भित यह अष्टक बनाया है। प्रस्तुत अष्टकमें गुणोंकी प्रशंसाके अतिरिक्त इतिवृत्त कुछ भी नहीं है। ____ अन्य साधनोंके आधारसे आपका ज्ञातव्य परिचय इस प्रकार है-आपके रचित (१) ज्ञान पंचमी पूजा सं० (२) सिद्धाचलस्तवन सं० १७६७ फा०व०७ (३) नवकरवाली १०८ गुणस्तवन आदि उपलब्ध हैं, और आपके लि० कई प्रतियें भी प्राप्त हैं। ___ आप क्षेमकीर्ति शाखाके विद्वान थे, परम्पराका नामानुक्रम इस प्रकार है :___ (१) जिन कुशल सूरि (२) विनय प्रभ (३) उ० विजय तिलक (४) उ९ क्षेमकीर्ति (५) तपोरत्न (६) तेजराज (७) वा० भुवनकीर्ति (८) हर्ष कुंजर () वा० लब्धिमंडण (१०) उ० लक्ष्मीकीर्ति ११ सोमहर्ष ( गुरु भ्राता, प्रसिद्ध विद्वान लक्ष्मीवल्लभ ) १२ वा० लक्ष्मी समुद्र (१३) कपूर प्रियजीके १४ शि० आप थे। आपकी परम्परामें (१५) वा० तत्व क्लभ (१६) प्रीतिविलास (१७) पं० धर्म सुन्दर (१८) वा० लाभ समुद्र (१६) मुनिसिंह (२०) अमृत रंग ( अबीरचन्द ) हुए, जोकि सं० १६७१ में स्वर्ग सिधारे ।
वा० अमृत धर्म
(पृ० ३०७) उपाध्याय क्षमाकल्याणजीके आप गुरुवर्य थे, अतः पाठकजीने
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