Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री अमर विजयजीके शि० लक्ष्मीचन्द कृत सुबोधिनीवैद्यकादि ग्रन्थ उपलब्ध है और द्वि०शि० उ० ज्ञानबर्द्धन शि० कुशलकल्याण शि० दयामेरुकृत ब्रह्मसेन चौ० ( सं० १८८० जेठ सु० १ बु, भावनगर ) उपलब्ध है। आपकी परम्परामें यतिवर्य जयचंदजी अभी विद्यमान है।
सुगुरुवंशावली
(पृ० २०७) जिनभद्र-जिनचन्द्र, जिनसमुद्र-जिनहंससूरिजीके पट्टधर जिनमाणिक्यसूरिजी थे। उनके पारखवंशीय वा० कल्याणधीर नामक शिष्य थे। उनके भणशाली गोत्रीय वा० कल्याण लाभ और कल्याणलाभके उ० कुशललाभ नामक विद्वान शिष्य थे। इनका विशेष परिचय यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० १६४ में देखना चाहिये ।
श्रीमद देवचन्द्रजी
(पृ० २६४) बीकानेर नगरके समीपवर्ती एक रमणीय ग्राम था, वहां लुणिया शाह तुलसीदासजी निवास करते थे, उनके धनवाइ नामक शीलवती पत्नी थी। एक समय खरतर वा० राजसागरजी वहां पधारे । दम्पतिने भावसे उन्हें वंदना की और धनबाइने जो कि उस समय गर्भवती थी, कहा कि यदि मेरे पुत्र होगा तो आपको वहरा दूंगी।गर्भ दिनों-दिन बढ़ने लगा, उत्तम गर्भके प्रभावसे असाधारण स्वप्न और उत्तम दौहद उत्पन्न होने लगे । इसी समय वहां जिनचन्द्र सूरिजी का शुभागमन हुआ इस समय धन बाइके एक पुत्र तो विद्यमान
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