Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह टोलोंको विजय कर नवानगरके चैत्योंकी पूजा, जिसे ढुढ़कोंने बन्ध करा दी थी पुनः सञ्चालित की। परधरी ग्रामके ठाकुरको आपने प्रतिबोध दिया और वे गुरु आज्ञामें चलने लगे। फिर पालीताना और पुनः नवानगर चतुर्मास कर १८०२-३ में राणाबाबमें पधारे। वहांके अधिपतिके भंगदर रोगको नष्ट किया, अतः वह भी आपका भक्त हो गया। . सं० १८०४ में भावनगर पधारे, वहां मेहता ठाकुरसी कट्टर ढुढ़कानुयायी थे, उन्हें प्रतिबोध दिया एवं वहांके ठाकुरको भी जैनमतानुरागी बनाया। सं० १८०४ में पालीतानेके मृगी उपद्रवको भी आपने नष्ट किया । सं० १८०५ में लीबड़ी पधारे और वहांके श्रावक डोसो बोहरा, शाह धारसी, शाह जयचन्द, जेठा, रहीकपासी आदिको विद्याध्ययन कराया । लीबड़ी, ध्रागंदा, चूड़ा इन तीन गावोंमें ३ प्रतिष्ठाएं की। ध्रागंदामें प्रतिष्ठाके समय सुखानन्दजी आपसे मिले थे। ____ आपके उपदेशसे सं० १८०८ में गुजरातसे शत्रुजंय सङ्घ निकला । गिरिराजपर बड़े उत्सव हुए। वहुतसे द्रव्यका सव्यय हुआ। सं० १८०८-६ का चतुर्मास गुजरातमें किया ।
१८१० में कचराशाहने शत्रुजंयका सङ्घ निकाला, श्रीदेवचन्द्रजी भी उसके साथ पधारे थे। शाह मोतोया और लालचन्द जैन धर्म में प्रवीण और दानेश्वरी थे। शत्रुञ्जयपर गुरु श्रीने प्रतिष्ठायें की। शाह कचरा, कीकाने ६० हजार रुपये व्यय किये।
सं० १८११ में लीबड़ीमें प्रतिष्ठा की । बढ़वाणके दुढ़क श्रावकों
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