Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
(१) जिनसिंह सूरिजीके पिताका निवास स्थान 'बीठावास' लिखा है ।
(२) पाटणमें धर्मसागर कृत ग्रन्थको अप्रमाणित सिद्ध किया। संघवी सोमजीके संघ सह शत्रुंजय यात्रा की ।
(३) इनके पदमहोत्सवपर श्रीमाल टांक गोत्रीय राजपालने १८०० घोड़े दान किये थे ।
( ४ ) अकबर सभामें ब्राह्मणोंको गंगा नदीके जलकी पवित्रता एवं सूर्यकी मान्यतापर प्रत्युत्तर देकर, विजय किया था । जिनराज सूरि
( पृ० १५० से १७७, ४१७ )
राजस्थानमें बीकानेर एक सुसमृद्ध नगर है, वहां राजा रायसिंह जी राज्य करते थे, उनके मन्त्री करमचन्दजी वच्छावत थे । जिन्होंने सं० १६३५ के दुष्कालमें सत्र्रकार ( दानशाला ) स्थापित कर डोलती हुई पृथ्वीको ( दान देकर ) स्थिर कर दी थी एवं लाहौर में जिनचन्द सूरिजीके युग प्रधान पद एवं जिनसिंह सूरिजी के आचार्य पदके महोत्सवपर क्रोड द्रव्य और नव ग्राम, नव हाथी आदिका महान दान किया था ।
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उस समय बीकानेर में बोथरा कुलोत्पन्न धर्मशी शाह निवास करते थे, उनकी धर्मपत्नीका शुभ नाम धारल देवी था । सांसारिक भोगोंको भोगते हुए दम्पत्ति सुखसे काल निर्गमन करते थे ।
हमारे संग्रहके प्रबन्धमें आपके ७ भाइयोंके नाम इस प्रकार हैं :१ राम, २ गेहा, ३ खेतसी, ४ भैरव, ५ केशव, ६ कपूर, ७ सातड,
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