Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
सुखनिधान
( पृ० २३६ )
आप हुंबड गोत्रीय और श्री समयकलशजोके सुशिष्य थे । आपके लिखित अनेकों प्रतियां हमारे संग्रहमें हैं, जिनसे ज्ञात होता. है कि आप सागरचन्द्रसूरि - सन्तानीय थे । आपकी परम्परा के नाम ये हैं: - (१) सागरचन्द्रसूरि, (२) वा० महिमराज, (३) वा० सोमसुन्दर, (४) वा० साधुलाभ, (५) वा० चारुधर्म, (६) वा० समयकलशजीके आप शिष्य थे । आपके शिष्य गुणसेनजीके रचित भी कई स्तवनादि उपलब्ध हैं और उनके शिष्य यशोलाभजी तो अच्छे कवि हो गये हैं। उनके लिखित और रचित अनेकों कृतियां हमारे संग्रहमें हैं । विशेष परिचय यथावकाश स्वतन्त्र लेखमें दिया जायगा । वाचनाचार्य पद्मम
( पृ० ४२० )
आप गोल्छा गोत्रीय चोलगशाहकी पत्नी चांगादेकी कुक्षिसे अवतरित हुए थे। आपको लघुवयमें युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीने अपने कर-कमलोंसे दीक्षित कर श्री० तिलककमलजीके शिष्य बनाए । ३७ वर्ष पर्य्यन्त निर्मल चारित्र - रत्नका पालन करते हुए सं० १६६१. में वालसीसर पधारे, चातुर्मास वहींपर किया । ज्ञानबलसे अपना अन्त समय निकट जानकर विशेष रूपसे आराधना और पभ्वपरमेष्टिका ध्यान करते हुए छः प्रहरका अनशन व्रत पालनकर मिती भाद्रव कृष्णा १५ को मध्याह्नके समय स्वर्गलोकको प्रयाण कर गए।
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