Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
वाचनाचार्य सुखसागर ( पृ० २५३ ) वाचनाचार्यजी साध्वाचार की कठिन क्रियाओंको पालन करनेमें बड़ा यत्न करते थे । सं० १७२५ में गच्छनायक के आदेशसे और स्तम्भ तीर्थकी यात्राके लिये खम्भातमें चतुर्मास किया । चतुर्मास सानन्द पूर्ण हुआ । सर्व नर-नारी आपके वचनकलासे प्रसन्न थे । चतुर्मास अनन्तर ज्ञानबलसे अपना आयुष्य अल्प ज्ञातकर अनशन आराधना पूर्वक मार्गशीर्ष कृष्णा १४ सोमवारको स्वर्ग सिधारे । उस समय आप सावचेती के साथ उतराध्ययन सूत्रका श्रवण कर रहे थे, श्रावक समुदाय आपके सन्मुख बैठा था । स्वर्गप्राप्ति के पश्चात् वहां आपकी पादुकाऐं स्थापित की गई । वा० हीरकीर्ति
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( पृ० २५६ )
युग० श्रीजिनचन्द्रसूरिके शिष्य वा० तिलककमल शि०पद्महेमके शिष्य दानराज, निलयसुन्दर, हर्षराजादि थे । इनमें दानराजजीके शिष्य हीरकीर्ति गोलछा गोत्रीय थे । सं० १७२६ में जोधपुरमें आपका चतुर्मास था। वहीं श्रावण शुक्ला १४ को ८४ लाख जीवायोनियोंसे क्षमतक्षामणाकी, दो प्रहरके अणशण आराधनापूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ ।
आपकी स्मृतिमें इसी संवतमें माघ कृष्णा १३ सोमवारको (१) पद्मम, (२) दानराज, (३) निलयसुन्दर, (४) हर्ष राजकी पादुकाओंके साथ आपकी पादुकाएं भी स्थापित की गई ।
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