Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
View full book text
________________
Arnavimun
काव्योंका ऐतिहासिक सार
४७ सृरिजीने लवेरेमें आपको उपाध्याय पद प्रदान किया था। सं० १७०२ के चैत्र शुक्ला त्रयोदशीको अहमदाबादमें अनशन आराधनापूर्वक आप स्वर्ग सिधारे । आपके विस्तृत कृति-कलापकी संक्षिप्त सूची यु० जिनचन्द्र सूरि प्रन्थके पृ० १६८ में दी गयी है।
यश कुशल
(पृ० १४६) .. श्री कनकसोमजीके आप शिष्य थे। हमारे संग्रहके (अन्य) गीत द्वयसे ज्ञात होता है कि हाजीखानड़ेरे (सिंध) में आपका स्वर्गवास हुआ था । वहां आपका स्मृति मंदिर है आपके शिष्य भुवनसोम शि० राजसागरके गीतानुसार आप बड़े चमत्कारी थे और आपके परचे (चमत्कार) प्रत्यक्ष और प्रसिद्ध हैं। राजसागरने सं० १७५६ फाल्गुन शुक्ला ११ को वहांकी यात्रा की । आपके गुरू कनकसोमजीका परिचय देखें:-युग० जिनचन्द सूरि पृ० १६४ ।
करमसी
(पृ० २०४) आपकी जन्मभूमि जेसलमेर है। आपके पिताका नाम चांपा शाह, माताका चांपल दे और गोत्र चोपड़ा था। आप बड़े तपस्वी
थे। २५० बेले ( छ? भक्त याने २ उपवास) और निवी आम्बिलादि तो अनेकों किये थे। बैशाख शुक्ला ७ को आपने संथारा किया था और आपका गच्छ खरतर था।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org