Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्यों का ऐतिहासिक सार
देवतिलकोपाध्याय [ पृ० ५५ ]
भरतक्षेत्रके अयोध्या - बाहड़ गिरि नामक प्रसिद्ध स्थानमें ओशवाल वंशीय भणशाली गोत्रके शाह करमचन्द निवास करते थे और उनकी सुहाणादे नामक पत्नीसे आपका जन्म हुआ था । ज्योतिषीने आपका जन्म नाम 'देदो' रखा । देदा कुमर अनुक्रमसे बड़े होने लगे और ८ वर्ष की वयमें सं० १५४१ में दीक्षा ग्रहण की एवं सिद्धान्तोंका अध्ययन कर सं० १५६२ में उपाध्याय पदसे विभूषित हुए ।
सं० १६०३ मार्गशीर्ष शुक्ला ५ को जैसलमेर में अनशन आराधनापूर्वक आपकी सद्गति हुई । अग्नि संस्कार के स्थलपर आपका स्तूप बनाया गया, जो कि बड़ा प्रभावशाली और रोगादि दुःखोंको विनाश करनेवाला है ।
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सं० १५८३-८५ में आपने दो शिलालेख - प्रशस्तियें रची थी, देखें जै० ले० सं० नं० २१५४/५५
आपके लिखित एवं संशोधित अनेकों प्रतियां बीकानेरके कई भण्डारोंमें विद्यमान हैं । आपके हस्ताक्षर बड़े सुन्दर और सुवाच्य
थे ।
आपके सुशिष्य हर्ष प्रभ शि० हीरकलशकृत कृतियोंके लिये देखें यु० जिनचन्द्र सूरि चरित्र पृ० २०६ एवं आपके शि० विजयराज शि० पद्ममन्दिरकृत प्रवचनसारोद्धार वालावबोध ( सं० २६५१ ) श्री पूज्यजीके संग्रहमें उपलब्ध है ।
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