Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री देवतिलकोपाध्यायजीकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी। सागर चन्द्र सूरि (१५ वी) शि० महिमराज शि० दयासागरजी केशि० ज्ञानमन्दिरजीके आप सुशिष्य थे। महिमराजके शि० सोमसुन्दरकी परम्परामें सुखनिधान हुए, जिनका परिचय आगे लिखा जायगा ।
दयातिलकजी
[पृ० ४१६] आप उपरोक्त क्षेमराजोपाध्यायजीके शिष्य थे । आपके पिताका नाम वच्छाशाह और माताका वाल्हादेवी था। आप नव-विध परिग्रहके त्यागी और निर्मल पंचमहाव्रतोंके पालनेमें शूरवीर थे।
महोपाध्याय पुण्यसागर
[पृ० ५७ ] उदयसिंहजीकी भार्या उत्तम दे ने आपको जन्म दिया था। श्रीजिनहंस सूरिजीने स्वहस्तकमलसे आपको दीक्षा दी थी।
आप समर्थ विद्वान और गीतार्थ थे। आपके एवं आपके शिष्य पद्मराज कृत कृतियों आदि का परिचय युगप्रधान जिनचंद्र सूरि प्रन्थके पृष्ट १८६ में दिया गया है।
उपाध्याय साधुकीर्तिजी
[पृ० १३७ ] ओशवाल वंशीय सचिंती गोत्रके शाह वस्तिगकी पत्नी खेमलदेके आप पुत्र थे। दयाकलशजीके शिष्य अमरमाणिक्यजीके आप
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