Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गहुंली नं० १ सिन्धु देश-हालां नगर स्थित कनकधर्मने सं० १८३४ माधव मासमें बनाई है।
गहुंली नं०२ चारित्रनन्दनने सं० १८५० वैशाख बदी ८गुरुवारको बीकानेरमें बनाई है। उस समय पूज्यश्री अजीमगंजमें थे, गहुंलीमें उसके पूर्व उनके सम्मेतशिखर, पावापुरीकी यात्रा करनेका उल्लेख कियागया है, एवं बीकानेर पधारनेके लिये विज्ञप्ति की गयी है।
जिनहर्ष सूरि
(पृ० ३००) बोहरा गोत्रीय श्रेष्टि तिलोकचन्दकी भार्या तारादेके कुक्षिसे आपका जन्म हुआ था। कवि महिमाहंसने आपके बीकानेर पधारनेके समयके उत्सव वर्णनात्मक यह गहुंली रची है। गहुंलीमें बीकानेरके प्रसिद्ध देवालय चिन्तामणि और आदीश्वरजीके दर्शन करनेको कहा गया है।
जिनसौभाग्य सूरि
(पृ० ३०१) आप कोठारी कर्मचन्दकी पत्नी करणदेवीकी कुक्षिसे उत्पन्न हुए थे। सं० १८४२ मार्गशीर्ष शुक्ला ७ गुरुवारको जिनहर्षसूरिजीके पद पर नृपवर्य रतनसिंहजी आदिके प्रयत्नसे विराजमान हुए थे। उस समय खजानची लालचन्दने पद स्थापनाका उत्सव किया था, और याचकोंको दान दिया था। . हमारे संग्रहके एक पत्रमें लिखा है कि जिनहर्षसूरिजीके स्वर्ग सिधारनेके पश्चात् पद किसको दिया जाय, इसपर विवाद हुआ। जिन-सौभाग्य सूरिजी उनके दीक्षित शिष्य थे और
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