Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार महेन्द्र सूरिजी अन्य यतीके शिष्य थे, पर जिनहर्षसूरिजीने उन्हें अपने पास रख लिया था। अतः अन्तमें यह निर्णय किया गया कि दोनोंके नामकी चिट्ठियां डाल दी जाँय, जिसके नामसे चिट्ठी उठे उसे ही पद दिया जाय । यह बात निश्चित होनेपैर सोभाग्य सूरिजी वयोबृद्ध और गच्छके मुख्य यतियोंको लेनेके के लिये बीकानेर आये। पीछेसे चिट्ठी डालनेके निश्चित दिनके पूर्व ही कुछ यतीओं और श्रावकोंके पक्षपातसे जिनमहेन्द्र सूरिजीको पद दे दिया गया। इधर आप मुख्य यतियोंके साथ मंडोवर पहुंचे और वहांका वृतान्त ज्ञात कर बीकानेर वापिस पधारे। यहांके यतिवों श्रावकों और राजा रत्नसिंहजोका पहलेसे ही इन्हें पद देनेका पक्ष था, अतः दे दिया गया। इन्हीं बातोंके संकेत इस गहुंलीमें पाये जाते हैं। . __ इनके पश्चात् पट्टधरोंका क्रम इस प्रकार है :
जिनहंससूरि-जिनचंद्रसूरि-जिनकीर्तिसूरि, इनके पट्टधर जिनचारित्रसूरिजी अभी विद्यमान है।
भूल सुधार जिनेश्वरसूरि (प्रथम) के शि० जिनचंद्रसूरिजीका नाम छूट गया है। उनका रचित 'संवेग-रंगशाला' ग्रन्थ प्रकाशित हो
चुका है।
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