Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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मंडलाचार्य और विद्वद मुनि मंडल भावप्रभसूरि
( पृ० ४६ )
माल्हू शाखा के लुणिग कुल में सव्व शाहकी भार्या राजलदे के आप. पुत्र रत्न थे । श्री जिनराज सूरि ( प्रथम ) के आप ( दीक्षित ) सुशिष्य तथा सागरचन्द्रसूरिजी के पट्टधर थे, आप साध्वाचार का प्रशंसनीय पालन करते थे और अनेक सद्गुणोंके निवासस्थान थे । कीर्त्तिरन सूरि
( पृ० ५१-५२, पृ० ४०१-४१३ )
ओसवंशके संखवाल गोत्रमें शाह कोचर बड़े प्रसिद्ध पुरुष हो गये हैं, उनके सन्तानीय ( वंशज ) आपमल्ल और देपा हुए। इनमें देपाके देवलदे नामक धर्मपत्नी थी, जिसकी कुक्षिसे लक्खा, भादा,केल्हा, देल्हा ये चार पुत्र उत्पन्न हुए । इनमें देल्हा कुंवरका जन्म: सं० १४४६ में हुआ था, १४ वर्षकी लघु वयमें (सं० १४६३ आषाढ़ वदी ११ ) में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। श्री जिनबद्ध 'न सूरिजीने आपका शुभ नाम 'कीर्त्तिराज' रखा और शास्त्रोंका अध्ययन भी स्वयं आचार्यश्री ने कराया । विद्वान होनेके पश्चात् सं० १४७० में वाचनाचार्य पद ( जिनवर्द्धन सूरिजीने) और सं० १४८० में उपाध्याय पद महेवेमें जिनभद्र सूरिजीने प्रदान किया, अतः माता देवलदेको बड़ा हर्ष हुआ । सिन्धु और पूर्व देशोंकी तरफ विहार करते.
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