Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गुढे (सं० १८२० ) में चौमासा किया। चतुर्मासके अनन्तर शीघ्र बिहारकर महेवा प्रदेशको वंदाकर महेवेमें नाकोड़े पार्श्वनाथकी यात्रा की, वहांसे बिहारकर जलोलमें (सं० १८२१ ) में चतुर्मास किया। वहांसे खेजडले, खारिया रह कर रोहीठ, मंडोवर, जोधपुर, तिमरी होकर मेड़ते ( १८२३) पधारे । वहां ४ महीने रहकर जैपुर शहर पधारे, वह शहर क्या था मानो स्वर्ग ही पृथ्वीपर उतर आया हो, वहां वर्ष दिनकी भांति और दिन घड़ीकी भांति व्यतीत होते थे। जैपुरके संघका अत्याग्रह होनेपर भी पूज्यश्री वहां नहीं ठहरे और मेवाड़की ओर विहारकर यश प्राप्त किया। उदयपुरसे १८ कोसपर स्थित धूलेवामें ऋषभेशकी यात्राकर उदयपुर ( १८२४ ) पधारें और विशेष विनतीसे पालीवालै (१८२५) पाट विराजे नागौर (का संघ) बीचमें अवश्य आयगा, यह जानते हुए भी साचौर (अपने मनकी तीव्र इच्छासे (१८२६) पधारे । इस समय सूरतके धनाड्योंने योग्य अवसर जानकर विनती पत्र भेजा और पूज्यश्री भी उस ओर बिहार करनेसे अधिक लाभ जान, (१८२७) सूरत पधारे ।
वहांके श्रावकोंको प्रसन्न कर आप पैदल विचरते हुए (१८२६) राजनगर पधारे। वहां तालेवरने बहुत उछव किये और २ वर्ष तक रात दिन सेवा की । वहांसे श्रावक संघके साथ शत्रुजय गिरनारकी,यात्रा कर ( १८३०) वेलाउलके संघको वंदाया। वहांसे मांडवी (१८३१) पधारे। वहां अनेकों कोट्याधीश और लक्षाधिपति व्यापारी निवास करते थे। समुद्रसे उनका ब्यापार चलता मार्गशीर्ष महिनेमें भाबगिरिकी यात्रा कर चतुर्मास बीलाड़े (१८२३) रहे।
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