Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार
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पातशाहका चित्त चमत्कृत कर ५०० वन्दीजनोंको कारावास ( वाखरसी) से छुड़ाकर महान सुयश प्राप्त किया।
कवि भक्तिलाभने गुरुभक्तिसे प्रेरित होकर इस यशगीतकी रचना की- वि० आपके रचित आचाराङ्गदीपिका (सं० १५८२ बीकानेर) उपलब्ध है।
जिनमाणिक्य सूरि (उ० गुर्वावलियोंमें ) युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि (पृ० ५८ से १२४ ) जिनसिंह सरि (पृ० २२५ से १३३) । श्री जिनचन्द्र सूरिजी एवं जिनसिंह सूरिजीके सम्बन्धी गीत, रास आदि काव्योंका सर्व सारांश "युगप्रधान जिनचन्द सूरि" में दिया है। अतः यहां दुहराकर ग्रन्थके कलेवरको बढ़ाना उचित नहीं समझा गया।
जिनचन्द्र सूरि सम्बन्धी दो बड़े रास हैं, उनमेंसे "अकबरप्रतिबोध रासका सार उक्त मन्थके छठे, सातवें प्रकरणमें एवं निर्वाण रासका सार ११, १२ वें प्रकरणमें दे दिया गया है। - श्री जिनसिंह सूरिजीका ऐतिहासिक परिचय उक्त ग्रन्थके पृ० १७४ से १८२ तकमें लिखा गया है। आपके सम्बन्धमें हमें सूरचन्द कृत एक रास अभी और नया उपलब्ध हुआ है, पर उसमें हमारे लि० चरित्रके अतिरिक्त कोई विशेष नवीनता नहीं, और अन्थ बहुत बढ़ा हो जानेके कारण उसे प्रकाशित नहीं किया गया।
सूरचन्द्र कृत रासमें नवीन बातें ये हैं :
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