Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्योंका ऐतिहासिक सार
१६
खरतर गुरुगुण छप्पय और गुरुगुण षट्पदका सार
प०१ से ३ एवं २४ से ४० नाम पदस्थापनासंवत मिती स्थान जिनालय पददाता जिजवल्लभः-सं०११६७ आषाढ़ शुक्ला ६चित्तौड़, महावीर, देवभद्रसूरि जिनदत्तः-सं० ११६६ वैशाख कृष्णा ६ , , , जिनचन्द्रः--सं० १२०५ बैशाख शुक्ला ६ विक्रमपुर, ,, जिनदत्तसूरि जिनपतिः-सं०१२२३ कार्तिक शुक्ला १३ बबेरेपुर, जयदेवसूरि जिनेश्वरः-सं० १२७८ माह शुक्ला ६ जालौर, ,, सर्वदेवसूरि जिनप्रबोध-सं० १३३१ आश्विन (कृष्णा) ५ ,, जिनचन्द्रः-सं० १३४१ वैशाख शुक्ला ३ ,, जिनकुशल:--सं० १३७७ ज्येष्ठ कृष्णा ११ पाटण, जिनपद्मसूरिः-सं० १३६० ज्येष्ठ शु० ६ देरावर, जिनलब्धिः-सं० १४०० आषाढ़ कृष्णा १ जिनचन्द्रः-सं० १४०६ माह शुक्ला १० जैसलमेर, जिनोदयः-सं० १४१५ आषाढ़ कृष्णा १३ खंभात, अजित, जिनराजः-१४३३ फाल्गुण कृष्णा ६ पाटण, शांति, लोकहिताचार्थ जिनभद्र-सं० १४७५ माह (शु० १५)भाणशल्लि,
अजित, सागरचंद्राचार्य
अन्य महत्वके उल्लेख:-(गा २० ) सं० १०८० पाटग दुर्लभ सभा चैत्यवासी विजय, जिनेश्वर सूरिको खरतर विरुद प्राप्ति,(गा० २१) गौतमके १५०० तापसोंका प्रतिबोध, (हिगा २२)कालिकाचार्यका चतुर्थीको पयूषण करना,(गा २३)में जिनदत्त सूरिका युगप्रधानपद,(गा० ३०)में दशारणभद्रका
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