Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जिनहंससूरि
पृ०५३ जिनहंस सूरिजीका सूरिपद महोत्सव करमसिंहने एक लाख. पीरोजी खरचकर बड़े समारोहसे किया । आचार्य पद प्राप्तिके अनन्तर अनेक देशों में विहार करते हुए आप आगरे पधारे । श्रीमाल डुंगरसी और उनके भ्राता पामदत्तने अतिशय हर्षोत्साहसे प्रवेशोत्सव बड़े धूमधामसे किया, सजावट बड़ी दर्शनीय की गई, लोगोंकी भीड़से मार्ग संकीर्ण हो गये, पातशाह स्वयं हाथीके होदे उम्बर खान, वजीर इत्यादि राज्यके अमलदारोंके साथ सामने आये, वाजिन बज रहे थे। श्राविकायें मंगलकलश मस्तकपर धारण कर गुरुश्रीको मोतियोंसे बधा रहीं थीं। रजत मुद्रा (रुपये) के साथ पान (ताम्बूल) दिये गये, इससे बड़ा यश फैला और दिल्लीपति सिकन्दर पातशाहको यह जान बड़ा आश्चर्य उत्पन्न हुआ। उन्होंने सूरिजीको राजसभा (दीवानखाना) में आमंत्रित कर करामात दिखाने को कहा, क्योंकि सम्राटके खरतर जिनप्रभसूरिजीके करामात (चमत्कार) की बातें, पहिले लोगोंसे सुनी हुई थी। पूज्यश्रीने तपस्याके साथ ध्यान करना प्रारम्भ किया, यथासमय जिनदत्तसूरिजीके प्रसाद एवं ६४ योगिनीयोंके सानिध्यसे किसी चमत्कार विशेषसे सिकन्दर वीर चन्दन (गा० २३) पीछेकी १ गाथामें सं० १४१२ फा० व १४ अभयतिलकके रचनाका लेख है, (द्वि० गा० २३) में जिनलब्धि सूरिको मवलक्ष गोत्रीय धणसिंहके भार्या खेताहोके कुक्षिसे उत्पन्न होना और बाल्यवयमें व्रत लेना, लिखा है।
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