Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्यों का ऐतिहासिक सार
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और चितौडस्थ चामुण्डा देवीको प्रतिबोध देनेवाले जिनवल्लभसूरि और उनके पट्टधर योगिराज जिनदत्त सूरि हुए कि जिन्होंने ज्ञानध्यान के प्रभावसे योगिनियां आदि दुष्ट देवोंको किंकर बना लिये थे । उनके पदपर सकल कला सम्पन्न जिनचन्द्र सूरि और उनके पट्टधरवादियों रूप गजों के विदारण में सिंह साहश (वादी मानमर्दन ) जिनपति सूरिजी हुए ।
जिनपति सूरि के जिनेश्वर सूरि उनके पट्टधर जिनप्रबोध सूरि और उनके पट्टधर जिनचन्द्र सूरि हुए, जिन्होंने बहुत देशों में सुविहित विहारकर त्रिभुवन में प्रसिद्धी प्राप्त की एवं सुरताण ( सम्राट् ) कुतबुद्दीनको रंजित किया था, उनके पट्टधर जिनकुशल सूरि हुए, जिनके पदस्थापनाका वृतान्त इस प्रकार है:
दीनोद्धारक कल्पतरु और महान् राज्य प्रसादप्राप्त मन्त्री देवराजके पुत्र जेल्हेकी पत्नि जयत श्री के पुत्ररत्न कि जिनका दीक्षित नाम वाचनाचार्य कुशलकीर्त्ति था, को राजेन्द्रचन्द्र सूरिने पाटण में जिन - चन्द सूरिके पदपर स्थापित किया । उस समय दिल्ली वास्तव्य महती - या ठक्कुर विजय सिंह एवं पाटणके ओसवाल तेजपाल व उनका लघुभ्राता रूद्रपालने श्रीराजेन्द्रचन्द्र सूरि और विवेकसमुद्रोपाध्याय से पद महोत्सव करनेका आदेश मांगा और उनकी आज्ञा प्राप्तकर सर्वत्र कुंकुंम पत्रीकाएं प्रेषित कर बड़ा महोत्सव प्रारम्भ किया । सं० १३७७ के ज्येष्ठ कृष्णा एकादशीके दिन जिनालयको देवविमानके सादृश सुशोभित कर जिनेश्वर प्रभुके समक्ष राजेन्द्रचन्द्र सूरिने वा० कुशलकीर्त्तिको जिनचन्द्र सुरिके पदपर स्थापित कर 'जिनकुशल
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