Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह विक्रमपुर स्थित महावीर प्रतिमाके ध्यान बलसे अपने आयुष्यका अन्त निकट जानकर श्री जिनप्रबोधसूरिजी जावालपुर पधारे और वहां क्षेमकीर्तिजीको स्वहस्त कमलसे सं० १३४१ वै० शु० ३ अक्षय तृतीयाको वीर चैत्यमें बड़े महोत्सवपूर्वक आचार्य पद प्रदान कर गच्छभार सौंपकर जिनप्रबोधसूरिजी स्वर्ग सिधारे । आचार्य पदके अनन्तर आपका शुभ नाम जिनचन्द्रसूरि प्रसिद्ध किया गया । आपके रूप लावण्य और गुण सचमुच सराहनीय थे । श्रीकर्णदेव जैत्रसिंह, और समरसिंहजी भूपति त्रय आपकी सेवा करनेमें अपना अहोभाग्य समझते थे। आपने बिम्ब प्रतिष्ठा, दीक्षा एवं पद प्रदानादि कर अनेकानेक धर्मप्रभावनाकी । शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थोकी यात्रा की। एवं गुजरात, सिन्ध, मारवाड़, सवालझदेश, बागड़, दिल्ली आदि देशोंमें विहार कर धर्म प्रचार किया। सं० १३७६ के आषाढ़ शुक्ल ६ को राजेन्द्र चन्द्र सूरिजीको अपने पदपर कुशल कीर्तिको स्थापन करने आदिकी शिक्षा देकर अनशन आराधनापूर्वक स्वर्ग सिधारे।
जिनकुशल सूरि
(पृ० १५ से १६) अणहिल्ल पटणाधीश दुर्लभराज ( की सभामें चैत्यवासियोंको परास्त कर ) के समय बसतिमार्गप्रकाशक जिनेश्वर सूरि ( प्रथम ) के पट्टपर संवेगरंगशालाके कर्ता जिनचन्द्र सूरि, नवांगीकृतिकर्ता अभयदेव सूरि कि जिन्होंने (स्तम्भन) पार्श्वनाथके प्रसादसे धरणेन्द्र पद्मावती आदि देवोंको साधित किये, उनके पट्टपर संवेगीशिरोमणि
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