Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह __ मरुकोट निवासी भण्डारी नेमचन्द्रजी (षष्टि शतककर्ता) सद्गुरुके शोधमें १२ वर्ष तक पर्यटन करते हुए पाटण पधारे और आपके सद्गुणोंसे प्रतिबोधको प्राप्त हुए। इतना ही नहीं, भण्डारीजीके पुत्रने आपके पास दीक्षा ग्रहण की थी। वास्तवमें आप युग-प्रधान आचार्य थे।
इस प्रकार स्वपर क्ल्याण करते हुए सं० १२७७ आषाढ़ शुक्ला १० को पाल्हणपुरमें स्वर्ग सिधारे । वहाँ संघने स्तूप बनवाया।
जिनेश्वर सूरि
(पृ० ३७७) मरुस्थलके शिरोमणि मरोट कोट निवासी भण्डारी नेमचन्द्रकी भार्या लक्ष्मणीकी कुक्षिसे सं० १२४५ मार्गशीर्ष शुक्ला ११ को आपका जन्म हुआ था। अम्बिका देवीके स्वप्नानुसार आपका जन्म नाम 'अम्बड़' रखा गया ।
श्री जिनपति सूरिजीके सदुपदेशसे वैराग्य वासित होकर आपने अपने माता-पितासे प्रवज्या ग्रहण करनेकी आज्ञा मांगी, माताश्रीने संयमकी दुर्द्धरता बतलाई पर उत्कट वैराग्यवानको वह असार ज्ञात हुई; क्योंकि आपका ज्ञान-गर्भित वैराग्य संसारके दुखोंसे विलग होनेके लिये ही हुआ था।
सं० १२५८ चैत्र कृष्णा २ खेड़ नगरके शान्ति जिनालयमें श्री जिनपति सूरजीने दीक्षित कर आपका नाम वीरप्रभ रखा, आप सर्वसिद्धान्तोंका अवगाहन कर श्री जिनपति सूरिके पदपर सुशोभित हुए । आचार्य पद प्राप्तिके पश्चात् आप जिनश्वर सूरि नामसे
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