Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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काव्यों का ऐतिहासिक सार
पर स्थापित किया था। कहा जाता है कि आपके भालस्थलपर मणि श्री । अतः नरमणिमण्डित ( भाल स्थल ) नाम (संज्ञा) से आपकी सर्वत्र प्रसिद्धि है ।
सं० १२२३ भाद्र कृष्ण चतुर्दसीको दिल्लीमें आपका स्वर्गवास हुआ ।
जिनपति सूरि
( पृ० ६ से १० )
मरुस्थलके विक्रमपुर निवासी माल्हू यशोवर्द्धनकी भार्या सूहवदेकी कुक्षिसे सं० १२१० चैत्र कृष्ण अष्टमीके दिन आपका जन्म हुआ था। आपका जन्मका शुभ नाम 'नरपति' रखा गया । सं० १२१८ फाल्गुन कृष्ण १० को जिनचन्द्र सूरिजीके पास भीमपल्ली में आपने दीक्षा ग्रहण कर सर्व सिद्धान्तोंका अध्ययन किया ।
सं० १२२३ कार्तिक शुक्ला १३ बब्बेरकपुरमें जयदेवाचार्यने श्री निचन्द्र सूरके पदपर स्थापन कर आपका नाम जिनपति सूरि रखा, इसके पश्चात आपने अपनी अद्वितीय मेधा व प्रतिभासे ३६ वादों में अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज एवं जयसिंह आदिके राज्यसभामें विजय प्राप्त की । वादी रूपी हस्तियोंके विदीर्णार्थं आप सिंहके समान थे। आपने बहुत से शिष्यों को दीक्षा दी। अनेकों जिन विम्बों आदि की प्रतिष्ठायें की। शासन देवी आपके पादपद्मोंकी सेवा करती थी और जालन्धरा देवीको आपने रन्जित किया था । खरतर गच्छकी मर्यादा ( विधि ) आपने ही सुव्यवस्थित की थी ।
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