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________________ काव्यों का ऐतिहासिक सार १३ और चितौडस्थ चामुण्डा देवीको प्रतिबोध देनेवाले जिनवल्लभसूरि और उनके पट्टधर योगिराज जिनदत्त सूरि हुए कि जिन्होंने ज्ञानध्यान के प्रभावसे योगिनियां आदि दुष्ट देवोंको किंकर बना लिये थे । उनके पदपर सकल कला सम्पन्न जिनचन्द्र सूरि और उनके पट्टधरवादियों रूप गजों के विदारण में सिंह साहश (वादी मानमर्दन ) जिनपति सूरिजी हुए । जिनपति सूरि के जिनेश्वर सूरि उनके पट्टधर जिनप्रबोध सूरि और उनके पट्टधर जिनचन्द्र सूरि हुए, जिन्होंने बहुत देशों में सुविहित विहारकर त्रिभुवन में प्रसिद्धी प्राप्त की एवं सुरताण ( सम्राट् ) कुतबुद्दीनको रंजित किया था, उनके पट्टधर जिनकुशल सूरि हुए, जिनके पदस्थापनाका वृतान्त इस प्रकार है: दीनोद्धारक कल्पतरु और महान् राज्य प्रसादप्राप्त मन्त्री देवराजके पुत्र जेल्हेकी पत्नि जयत श्री के पुत्ररत्न कि जिनका दीक्षित नाम वाचनाचार्य कुशलकीर्त्ति था, को राजेन्द्रचन्द्र सूरिने पाटण में जिन - चन्द सूरिके पदपर स्थापित किया । उस समय दिल्ली वास्तव्य महती - या ठक्कुर विजय सिंह एवं पाटणके ओसवाल तेजपाल व उनका लघुभ्राता रूद्रपालने श्रीराजेन्द्रचन्द्र सूरि और विवेकसमुद्रोपाध्याय से पद महोत्सव करनेका आदेश मांगा और उनकी आज्ञा प्राप्तकर सर्वत्र कुंकुंम पत्रीकाएं प्रेषित कर बड़ा महोत्सव प्रारम्भ किया । सं० १३७७ के ज्येष्ठ कृष्णा एकादशीके दिन जिनालयको देवविमानके सादृश सुशोभित कर जिनेश्वर प्रभुके समक्ष राजेन्द्रचन्द्र सूरिने वा० कुशलकीर्त्तिको जिनचन्द्र सुरिके पदपर स्थापित कर 'जिनकुशल Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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