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________________ Parvru.vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सूरि' नाम स्थापना की, उस समय अनेक देशोंके संघ आये थे, वाजित्रोंके नादसे आकाशमण्डल. व्याप्त हो गया था । महतीयाण विजय सिंहने खूब गुरुभक्ति की, देश-विदेश विख्यात सामलवंशी वीरदेवने स्वधर्मीवात्सल्य किया। उस समय ७०० साधु, २४०० साध्वीयोंको तेजपाल, रुद्रपालने अपने घर आमंत्रित कर वस्त्र परिधापन किया । अणहिल्ल पाटणकी शोभा उस समय बड़ी दर्शनीय और चित्ताकर्षक थी। महोत्सव करनेवाले तेजपालको सभी लोग बड़ी उत्सुकतासे देख रहे थे । इस प्रकार युगप्रधान पद महोत्सव कर सचमुच तेजपालने बड़ी ख्याति प्राप्त की। __ आपका विशेष परिचय खरतरगच्छ गुर्वावली और पट्टावलियोंमें पाया जाता है । उक्त गुर्वावलो यथावसर हमारो ओरसे सानुवाद प्रकाशित होगी। आपकी रचित "चैत्यवंदन कुलक वृत्ति" प्रकाशित हो चुकी है। जिनपद्मसूरि (पृ० २० से २३) उपरोक्त श्री जिनकुशल सूरिजी महिमंडलमें विचरते हुए देरावर पधारे। वहां व्रत ग्रहण, मालाग्रहण, पदस्थापन आदि अनेक धर्मकृत्य हुए।सूरिजीने अपना आयुष्यका अन्त निकट ज्ञातकर (तरुणप्रभ) आचा र्यको अपने पद (स्थापन) आदि की समस्त शिक्षा देकर स्वर्ग सिधारे । इसी समय सिन्धु देशके राणु नगर वास्तव्य रीहड श्रावक पुनचन्दके पुत्र हरिपाल देरावर पधारे और युगप्रधान पद-महोत्सव करनेकी आज्ञाके लिये तरुणप्रभाचार्यसे विनोत प्रार्थना को और आज्ञा प्राप्त Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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