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अध्यात्मकल्पद्रुम
यथा विदां लेप्यमया न तत्त्वात्, सुखाय मातापितृपुत्रदाराः । तथा परेऽपीह विशीर्णतत्तदा कारमेतद्धि समं समग्रम् ॥२४॥
अर्थ – “जिस प्रकार चित्र में अंकित माता, पिता, पुत्र और स्त्री वास्तविक रूप से समझदार आदमी को सुख नहीं देते उसी प्रकार इस संसार में रहनेवाले प्रत्यक्ष मातापितादि सुख नहीं देते । इन दोनों का आकार नाशवंत है, अतः ये दोनों एक ही समान हैं।" ॥२४॥ जानन्ति कामान्निखिलाः ससंज्ञा,
अर्थं नराः केऽपि च केऽपि धर्मम् । जैनं च केचिद् गुरुदेवशुद्धं,
केचित् शिवं केऽपि च केऽपि साम्यम् ॥२५॥ अर्थ - "सर्व संज्ञावाले प्राणी 'काम' को जानते हैं, उनमें से कुछ अर्थ (धनप्राप्ति) को जानते हैं, और उनमें से भी कुछ धर्म को जानते हैं, उनमें से भी कुछ जैनधर्म को जानते हैं, और उनमें से भी बहुत कम शुद्ध देवगुरुयुक्त जैनधर्म को जानते हैं, उनमें से भी बहुत कम प्राणी मोक्ष को जानते हैं और उनमें से भी बहुत कम प्राणी समता को जानते हैं ॥२५॥" स्निह्यन्ति तावद्धि निजा निजेषु,
पश्यन्ति यावन्निजमर्थमेभ्या । इमां भवेत्रापि समीक्ष्य रीति,
स्वार्थे न कः प्रेत्यहिते यतेत ॥२६॥ अर्थ - "सगे सम्बन्धी जब तक अपने संबंध में