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अध्यात्मकल्पद्रुम
परन्तु उनके मोह से भविष्य में उत्पन्न होनेवाली नरक की पीड़ाओं का विचार तू क्यों नहीं करता ?" । अमेध्यभस्त्रा बहुरंध्रनिर्यन् मलाविलोद्यत्कृमिजालकीर्णा । चापल्यमायानृतवंचिका स्त्री, संसाकारमोहान्नरकाय
भुक्ता ॥७॥ अर्थ - "विष्टा से भरी हुई चमड़े की थैली, बहुत से छिद्रों में से निकलते हुए मल (मूत्र-विष्ठा) से मलिन, योनि में उत्पन्न होनेवाले कीड़ो से परिपूर्ण, चपलता, माया और असत्य (अथवा मायामृषावाद) से ठगनेवाली स्त्रियों का पूर्व संस्कार के मोह से नरक में जाने के लिये ही भोग किया जाता है।" निर्भूमिर्विषकंदली गतदरी व्याघ्री निराहोमहाव्याधिर्मृत्युरकारणश्च ललनाऽनभ्रा च वज्राशनिः । बंधुस्नेहविघातसाहसमृषावादादिसंतापभूः, प्रत्यक्षापि च राक्षसीति बिरुदैः ख्याताऽगमे त्यज्यताम् ॥८॥
अर्थ - "(स्त्री) बिना भूमि से (उत्पन्न हुई) विष की लता है, बिना गुफा की सिंहनी है, बिना नाम की भयंकर व्याधि है, बिना कारण की मृत्यु है, बिना आकाश की बिजली है, सगे अथवा भाइयों के स्नेह का नाश, साहस, मृषावाद आदि संतापों का उत्पत्ति स्थान है और प्रत्यक्ष राक्षसी है - ऐसे ऐसे उपनाम स्त्रियों के लिये आगम में दिये गये हैं, अतः उसको छोड़ दो ।"