Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 34
________________ अध्यात्मकल्पद्रुम है? इस भव में संताप और परभव में नरक देने रूप अनेक दोष हैं यह तू क्यों नहीं देखता है ?" यत्कषायजनितं तव सौख्यं, यत्कषायपरिहानिभवं च । तद्विशेषमथवैतदुदक, संविभाव्य भज धीर! विशिष्टम् ॥६॥ ___ अर्थ - "कषायसेवन से तुझे जो सुख हो और कषाय के क्षय से तुझे जो सुख हो उनमें अधिक सुख किसमें है ? अथवा कषाय का और उसके त्याग का क्या परिणाम है ? उसका विचार करके हे पंडित ! उन दोनों में से जो अच्छा हो उसीका आदर कर ।" सुखेन साध्या तपसां प्रवृत्ति र्यथा तथा नैव तु मानमुक्तिः । आद्या न दत्तेऽपि शिवं परा तु, निदर्शनाद्वाहुबलेः प्रदत्ते ॥७॥ अर्थ - "जिसप्रकार तपस्या में प्रवृत्ति करना सहज है उसप्रकार मान का त्याग करना सहज नहीं है । केवल तपस्या की प्रवृत्ति मोक्ष की प्राप्ति नहीं करा सकती है, किन्तु मान का त्याग तो बाहुबलि के दृष्टान्त के समान मोक्ष की अवश्यमेव प्राप्ति करा सकता है।" सम्यग्विचार्येति विहाय मानं, रक्षन् दुरापाणि तपांसि यत्नात् । मुदामनीषी सहतेऽभिभूती:, शूरः क्षमायामपि नीचजाताः ॥८॥

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