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अध्यात्मकल्पद्रुम
(धर्मक्रिया) बहुत थोड़े होने पर भी यदि शुद्ध हो तो अत्यन्त फल देती है और बहुत होनेपर भी यदि अशुद्ध हो तो मोक्षरूप फल नहीं दे सकती है।" दीपो यथाल्पोऽपि तमांसि हन्ति,
लवोऽपि रोगान् हरते सुधायाः । तृण्यां दहत्याशु कणोऽपि चाग्ने
धर्मस्य लेशोऽप्यमलस्तथांहः ॥१३॥ अर्थ - "एक छोटा सा दीपक भी अंधकार का नाश कर देता है, अमृत की एक बून्द भी अनेकों रोगों को नष्ट कर देती है, और अग्नि की एक चिन्गारी भी तिनकों के बड़े भारी ढेर को जला देती है, इसी प्रकार यदि धर्म का थोड़ा अंश भी निर्मल हो तो पाप को नष्ट कर देता है।" भावोपयोगशून्याः, कुर्वन्नावश्यकी: क्रियाः सर्वाः । देहक्लेशं लभसे, फलमाप्यस्यसि नैव पुनरासाम् ॥१४॥
अर्थ - "भाव और उपयोग के बिना सर्व आवश्यक क्रिया करने से तुझे एकमात्र कायक्लेश (शरीर की मजदूरी) होगा, परन्तु उसका फल कदापि प्राप्त नहीं हो सकेगा।"