Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 109
________________ १०८ अध्यात्मकल्पद्रुम हैं वे तो चाहे जैसा भाषण करे अथवा दूसरों को कष्ट पहुंचाए, परन्तु जिन्होंने अत्यन्त कष्ट उठाकर तपस्यादि को प्राप्त किया है वे इसके नाश हो जाने के भय से योग का संवर क्यों नहीं करते हैं ?" भवेत्समग्रेष्वपि संवरेषु, परं निदानं शिवसंपदां यः । त्यजन् कषायादिजदुर्विकल्पान्, कुर्यान्मनः संवरमिद्धधीस्तम् ॥२१॥ अर्थ – “मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करने का बड़े से बड़ा कारण सब प्रकार के संवरों में भी मन का संवर है, ऐसा समझकर समृद्ध बुद्धिजीव कषाय से उत्पन्न दुर्विकल्पों का त्यागकर मन का संवर करे ।" तदेवमात्मा कृतसंवरः स्यात्, निःसङ्गताभाक् सततं सुखेन । निःसङ्गभावदथ संवरस्तद्द, द्वयं शिवार्थी युगपद्भजेत ॥२२॥ अर्थ - " ऊपर कहे अनुसार जिसने संवर कर लिया हो उसकी आत्मा शीघ्र ही बिना किसी प्रयास के नि:संगता का भाजन हो जाती है, अपितु निःसंगता भाव से संवर होता है, अतएव मोक्ष के अभिलाषी जीव को इन दोनों को साथ ही साथ भजना चाहिये ।"

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