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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ - "संयमपालन के कष्टों से डरकर विषयकषाय से होनेवाले अल्प सुख में जो तू सन्तोष मानता हो तो फिर तिर्यंच नारकी के मिलनेवाले दुःखों को तू स्वीकार कर ले और स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त करने की अभिलाषा छोड़ दे।"
समग्रचिन्तातिहतेरिहापि, ___ यस्मिन्सुखं स्यात्परमं रतानाम् । परत्र चन्द्रादिमहोदयश्रीः,
प्रमाद्यसीहापि कथं चरित्रे ? ॥३८॥ अर्थ – "चारित्र से इस भव में सब प्रकार की चिन्ता और मन की आधि का नाश होता है इसलिये जिसकी उसमें लय लगी हुई हो उसको अत्यन्त आनंद की प्राप्ति होती है और परभव में इन्द्रासन तथा मोक्ष की महालक्ष्मी प्राप्त होती है। ऐसा होने पर भी समझ में नहीं आता कि यह जीव क्यों प्रमाद करता है ?"
महातपोध्यानपरिषहादि, ___ न सत्त्वसाध्यं यदि धर्तुमीशः । तद्भावनाः किं समितीश्च गुप्ती
र्धत्से शिवार्थिन्न मनःप्रसाध्याः ॥३९॥ अर्थ – “उग्र तपस्या, ध्यान, परीषह आदि सत्त्व से साधे जा सकते हैं, इनको साधने में यदि तू असमर्थ हो तो भी भावना, समिति और गुप्ति जो मन से ही साधे जा सकते हैं उनको हे मोक्षार्थी ! तू क्यों नहीं धारण करता ?"