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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ - "चारित्र के पालन करने में इस भव में जो कष्ट उठाने पड़ते हैं और परभव में नारकी और तिर्यंच गति में जो कष्ट उठाने पड़ते हैं इन दोनों में पारस्परिक रूप से प्रतिपक्षता है, अतएव सोच-विचारकर दोनों में से एक को छोड़ दे।" शमत्र यद्विन्दुरिव प्रमादजं
परत्र यच्चाब्धिरिव द्युमुक्तिजम् । तयोमिथः सप्रतिपक्षता स्थिता,
विशेषदृष्ट्यान्यतरद् गृहाण तत् ॥३३॥ अर्थ - "इस भव में प्रमाद से जो सुख होता है वह एक बिन्दु तुल्य है, और परभव में देवलोक और मोक्ष सम्बन्धी जो सुख होता है वह समुद्र के सदृश है, इन दोनों सुखों में परस्पर प्रतिपक्षता है, अतएव विवेक का प्रयोगकर दोनों में से एक को तू ग्रहण कर ले ।" नियन्त्रणा या चरणेऽत्र तिर्यक्
स्त्रीगर्भकुम्भीनरकेषु या च । तयोमिथः सप्रतिपक्षभावाद्
विशेषदृष्टयान्यतरां गृहाण ॥३४॥ अर्थ - "चारित्र पालने में तुझे इस भव में नियंत्रणा उठानी पड़ती है और परभव में भी तिर्यंच गति में, स्त्री के गर्भ में अथवा नारकी के कुंभीपाक में नियंत्रणा (कष्ट, पराधीनता) सहन करनी पड़ती है। इन दोनों प्रकार की नियन्त्रणा में परस्पर विरोध है, अतएव विवेकपूर्वक दोनों में