Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 91
________________ ९० अध्यात्मकल्पद्रुम से हैं उनको बारम्बार धिक्कार है । मूर्ख पुरुष द्वारा अकुशलता | काम में लाया हुआ शस्त्र (हथियार) उनके स्वयं के ही नाश का कारण होता है ।" संयमोपकरणच्छलात्परान्भारयन् यदसि पुस्तकादिभिः । गोखरोष्ट्रमहिषादिरूपभृत् तच्चिरं त्वमपि भारयिष्यसे ॥ २८ ॥ अर्थ - " संयम उपकरण के बहाने से दूसरों पर तू पुस्तक आदि वस्तुओं का भार डालता है, परन्तु वे गाय, गधा, ऊँट, पाड़ा आदि के रूप में तेरे पास से अनन्तकाल - पर्यन्त भार वहन कराएँगे ।" वस्त्रपात्रतनुपुस्तकादिनः, शोभया न खलु संयमस्य सा । आदिमा च ददते भवं परा, मुक्तामाश्रय तदिच्छयैकिकाम् ॥२९॥ अर्थ – “वस्त्र, पात्र, शरीर या पुस्तक आदि की शोभा करने से संयम की शोभा नहीं हो सकती है। प्रथम प्रकार की शोभा भववृद्धि करती है और दूसरे प्रकार की शोभा मोक्ष प्राप्ति कराती है। अतएव इन दोनों में से किसी एक की जिसकी तुझे अभिलाषा हो उसकी शोभा कर । अथवा उसके लिये तू वस्त्र, पुस्तक आदि की शोभा का त्याग कर । हे यति ! मोक्ष प्राप्त करने की अभिलाषा रखनेवाला तू संयम की शोभा के लिये I

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