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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ - " जिन मनुष्यों का मनोरंजन करने के लिये तू अच्छे और बुरे अनेक प्रकार के शास्त्रों का स्वाध्याय करता है और मायापूर्वक विचित्र प्रकार के भाषणों से (कंठशोषादि) खेद सहन करता है वे भवान्तर में वे कहाँ जाएँगे और तू कहाँ जाएगा ?" परिग्रहं चेद्व्यजहा गृहादेस्तत्किं नु धर्मोपकृतिच्छलात्तम् । करोषि शय्योपधिपुस्तकादे
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रोऽपि नामान्तरतोऽपि हन्ता ॥ २४ ॥ अर्थ – “घर आदि परिग्रह को तूने छोड़ दिये हैं तो फिर धर्म के उपकरण के बहाने से शय्या, उपधि, पुस्तक आदि का परिग्रह क्यों करता है ? विष का नामान्तर करने पर भी वह मारनेवाला ही होता है ।" परिग्रहात्स्वीकृतधर्मसाधना
भिधानसात्रात्किमु मूढ ! तुष्यसि । न वेत्सि हेम्नाप्यतिभारिता तरी, निमज्जयत्यङ्गिनमम्बुधौ द्रुतम् ॥२५॥
अर्थ - "हे मूढ़ ! धर्म के साधन को उपकरणादि का नाम देकर स्वीकार किये हुए परिग्रहों से तू क्यों कर प्रसन्न होता है ? क्या तू नहीं जानता है कि यदि जहाज में सोने का भार भी भरा हो तो भी वह तो उसमें बैठनेवाले प्राणियों को समुद्र में डूबोता ही है ?"