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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ - "हे आत्मा ! तू निष्पुण्यक है फिर भी पूजास्तुति की अभिलाषा रखता है और उसके प्राप्त न होने पर दूसरों से द्वेष करता है (जिससे) यहाँ भी अत्यन्त दुखों को सहन करता है और परभव में कुगति को प्राप्त करता है।" गुणैविहीनोऽपि जनानतिस्तुति
प्रतिग्रहान् यन्मुदितः प्रतीच्छसि । लुलायगोऽश्वोट्रखरादिजन्मभि
विना ततस्ते भविता न निष्क्रियः ॥१९॥ अर्थ - "तू गुणहीन है फिर भी लोगों से वन्दन, स्तुति, आहारपानी के ग्रहण आदि को खुशी से प्राप्त करने की अभिलाषा रखता है, परन्तु याद रखना कि पाडे गाय, घोड़े, ऊँट या गधे आदि का जन्म लिये बिना तेरा उस कर्ज से छुटकारा पाना असम्भव है।" गुणेषु नोद्यच्छसि चेन्मुने ! ततः,
प्रगीयसे यैरपि वन्द्यसेऽय॑से । जुगुप्सितां प्रेत्य गतिं गतोऽपि तै,
हसिष्यसे चाभिभविष्यसेऽपि वा ॥२०॥ अर्थ - "हे मुनि ! यदि तू गुण प्राप्त करने का यत्न न करेगा तो वे ही पुरुष जो तेरे गुणों की स्तुति करते हैं, तुझे वन्दना करते हैं और पूजा करते हैं जब तू कुगति को प्राप्त होगा तो तेरी हँसी उड़ाएँगे-तेरा पराभव करेंगे।"