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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ – “दुष्ट वचन इस लोक और परलोक में अनुक्रम से वैर कराते हैं और नरक गति प्राप्त कराते हैं, अग्नि से जला हुआ फिर उगता है परन्तु दुष्ट वचन से जले हुए में फिर से स्नेहांकुर नहीं फूटता है।"
अत एव जिना दीक्षाकालादाकेवलोद्भवम् । अवद्यादिभिया ब्रयुर्ज्ञानत्रयभृतोऽपि न ॥९॥
अर्थ - "इसलिये यद्यपि तीर्थंकर महाराज को तीनों ज्ञान होते हैं फिर भी दीक्षा काल से लेकर केवलज्ञान प्राप्त होने तक पाप के भय से वे कुछ भी नहीं बोलते हैं ।"
कृपया संवृणु स्वाङ्ग, कूर्मज्ञाननिदर्शनात् । संवृतासंवृताङ्गा यत्, सुखदुःखान्यवाप्नुयुः ॥१०॥
अर्थ - "(जीव पर) दया करके अपने शरीर पर संवर कर, कछुए के दृष्टान्तानुसार शरीर का संवर करनेवाला और न करनेवाला अनुक्रम से सुख दुःख को भोगता है।"
कायस्तम्भान्न के के स्युस्तरुस्तम्भादयो यताः। शिवहेतुक्रियो येषां, कायस्तांस्तु स्तुवे यतीन् ॥११॥
अर्थ - "एक मात्र काया के संवर से वृक्ष, स्तंभ आदि कौन कौन संयमी न हो सके ? परन्तु जिसका शरीर मोक्षप्राप्ति निमित्त क्रिया करने को उद्यत होता है ऐसे यति की हम स्तुति करते हैं।"
श्रुतिसंयममात्रेण, शब्दान् कान् के त्यजन्ति न । इष्टानिष्टेषु चैतेषु, रागद्वेषौ त्यजन्मुनिः ॥१२॥