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अध्यात्मकल्पद्रुम
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अर्थ - "जिस प्राणी को धर्म सम्बन्धी चिन्ता, गुरु और देव के प्रति भक्ति और वैशाग्य का अंशमात्र भी चित्त में न हो ऐसे पेटभाओं का जन्म पशुतुल्य है, उत्पन्न करनेवाली माता को भी क्लेश देनेवाला ही है।"
न देवकार्ये न च सङ्घकार्ये, __ येषां धनं नश्वरमाशु तेषाम् । तदर्जनाद्यैर्वजिनैर्भवान्धौ,
पतिष्यतां किं त्ववलम्बनं स्यात् ? ॥१७॥ अर्थ - "धन-पैसे एकदम नाशवंत है। जिनके पास पैसे हों, वे यदि उनको देवकार्य में अथवा संघकार्य में खर्च न करें, तो उनको सदैव द्रव्य प्राप्त करने के निमित्त किये हुए पापों से संसारसमुद्र में पड़ने पर किनका आधार होगा ?"