Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 46
________________ अध्यात्मकल्पद्रुम (मनुष्यलोक से) अनन्तगुणा अधिक है, जहाँ देवताओं को की हुई अनेक प्रकार की वेदनाएँ होती हैं कि जिनके रोने, चिल्लाने और आक्रन्द से सम्पूर्ण आकाश भर जाता है इस प्रकार की नारकी तुझे भविष्य में प्राप्त होनेवाली है, किन्तु हे कुमति ! इसका कुछ भी विचार न कर तू क्यों कषाय करके तथा अल्प समय के लिये सुख देनेवाले विषयों का सेवन करके आनन्द मानता है ?" । बन्धोऽनिशं वाहनताडनानि, क्षुत्तृड्दुरामातपशीतवाताः । निजान्यजातीयभयापमृत्युदुःखानितिर्यक्षिति दुस्सहानि॥१२॥ अर्थ - “निरन्तर बन्धन, भार का वहन, मार, भूख, प्यास, दुष्टरोग, ताप, शीत, पवन, अपनी तथा दूसरी जाति का भय और कुमरण-तिर्यंचगति में ऐसे असह्य दुःख हैं।" मुधान्यदास्याभिभवाभ्यसूया, भियोऽन्तगर्भस्थिति दुर्गतीनाम् । एवं सुरेष्वप्यसुखानि नित्यं, किं तत्सुखैर्वा परिणामदुःखैः ॥१३॥ अर्थ - "इन्द्रादि की अकारण सेवा करना, पराभव, मत्सर, अंतकाल, गर्भस्थिति और दुर्गति का भय-इसप्रकार देवगति में भी निरन्तर दुःख ही दुःख हैं । अपितु जिसका परिणाम दुःखजन्य हो उस सुख से क्या लाभ ?" सप्तभीत्यभिभवेष्टविप्लवानिष्टयोगगददुःसुतादिभिः । स्याच्चिरं विरसता नृजन्मनः, पुण्यतः सरसतां तदानय ॥१४॥

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