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अध्यात्मकल्पद्रुम हुआ है उसको भी यमनियमों से क्या प्रयोजन ?" दानश्रुतध्यानतपोऽर्चनादि,
वृथा मनोनिग्रहमन्तरेण । कषायचिन्ताकुलतोज्झितस्य,
परो हि योगो मनसो वशत्वम् ॥६॥ अर्थ- "दान, ज्ञान, ध्यान, तप, पूजा आदि सभी मनोनिग्रह के बिना व्यर्थ हैं । कषाय से होनेवाली चिन्ता और व्याकुलता से रहित ऐसे प्राणी का मन को वश में करना महायोग है।" जपो न मुक्त्यै न तपो द्विभेदं,
न संयमो नापि दमो न मौनम् । न साधनाद्यं पवनादिकस्य,
किं त्वेकमन्तःकरणं सुदान्तम् ॥७॥ अर्थ - "जप करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, न दो प्रकार के तप करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, इसी प्रकार संयम, दम, मौनधारण अथवा पवनादि की साधना आदि भी मोक्षप्राप्ति नहीं करा सकती, परन्तु ठीक तरह से वश में किया हुआ केवल एकमात्र मन ही मोक्ष की प्राप्ति करा सकता है !" लब्ध्वापि धर्मं सकलं जिनोदितं,
सुदुर्लभं पोतनिभं विहाय च । मनः पिशाचग्रहिलीकृतः पतन्,
भवाम्बुधौ नायतिदृग् जडो जनः ॥८॥